अपराध शास्त्र की परिभाषा एवं विषय क्षेत्र
अपराध शास्त्र की परिभाषा एवं विषय क्षेत्र
प्रश्न 1.अपराधशास्त्र की परिभाषा दीजिए तथा इसके विषय-क्षेत्र की विवेचनाकीजिए।
(अथवा)'अपराधशास्त्र अपराधी व्यवहार का विज्ञान है।" इस कथन की व्याख्याकीजिए।
सामाजिक जीवन को सुचारु रूप से चलाने हेतु एक व्यवस्था की आवश्यकता होती है। ऐसी व्यवस्था में इस प्रकार का प्रावधान होता है कि व्यक्ति म्यादित ढंग से रहे, स्वयं सामाजिक जीवन यापन करे तथा दूसरों को भी जीवन यापन करने दे। समाज के नियम, कानूनों एवं परम्पराओं तथा आदर्शों का पालन करे। इसका उल्लंघन करने वाले या अवैधानिक आचरण करने वाले व्यक्तियों को नियन्त्रित करने के लिए प्रत्येक समाज में नियन्त्रण के कुछ मान्य साधन होते हैं जिन्हें दण्ड कहा जाता है अपराध का प्रायोगिक उद्देश्य अपराधी आचरण के नियन्त्रण तथा अपराध की रोकथाम से
सम्बन्धित है। अपराधशास्त्र वह शास्त्र है जो अपराधी, कानून, अपचारी एवं अपराधी व्यवहार के लिए
उत्तरदायी कारणों एवं कारकों के साथ साथ दण्डशास्त्र तथा अपराध निरोध और नियन्त्रण एवं
अपराधियों के सुधार तथा पुनर्वासात्मक ज्ञान को समाहित करता है।
अपराधशास्त्र की परिभाषा
अपराधशास्त्र '"क्रिमिनोलॉजी का हिन्दी रूपान्तर है जिसकी अर्थ है "वह शास्त्र या विज्ञान जिसके अन्तर्गत अपराध का अध्ययन किया जाता है।'।
सदरलैण्ड के अनुसार, "अपराधशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जो सामाजिक न्याय के सन्दर्भ में अपराध का अध्ययन करता है"
नाइस के अनुसार," अपराधशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जो अपराध, उसके निवारण तथा दण्ड की विधियों का अध्ययन करता है।"
सेथना के अनुसार, "अपराधशास्त्र अपराध के अर्थ एवं उसके सहसंचारी कारकों का अध्ययन है तथा अपराध के नाम पर चलने वाली वस्तु के कारकों एवं उपचारों का एक विश्लेषण है।"
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि "अपराधशास्त्र ज्ञान की वह शाखा हैं।
जो अपराधियों के अध्ययन तथा इनके दण्ड व उपचार से सम्बन्धित है।"
अपराधशास्त्र का क्षेत्र-
किसी भी ज्ञान का क्षेत्र निर्धारित करना अत्यन्त ही कठिन कार्य है और अपराधशास्त्र तो सामाजिक विज्ञान है। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र अत्यन्त ही व्यापक होते हैं तथा उसके क्षेत्र के निर्धारण में काफी कठिनाई होती है। फिर भी अध्ययन और अध्यापन के लिए प्रत्येक विज्ञान का क्षेत्र होता है जिसकी सीमाओं के अन्तर्गत उस विजान का अध्ययन किया जाता है। अपराधशास्त्र के अध्ययन की सुविधा के लिए विद्वानों ने इसके क्षेत्र का निर्धारण किया है।
सरदलैण्ड ने अपराधशास्त्र के क्षेत्र, का निर्धारण करते हुए लिखा है कि इसके क्षेत्र के अन्तर्गत निम्न तीन त्त्वों को सम्मिलित किया जा सकता है-
(अ) कानून बनाने की प्रक्रियाएँ,
(व) कानून तोड़ने की प्रक्रियाएँ, और
(स) कानून तोड़ने से उत्पन्न प्रक्रियाएँ।
ये प्रक्रियाएँ अन्त: क्रियाओं के एकीकरण की परिणाम है। कुछ ऐसी क्रियाएँ जो अवांछित होती है, अपराध के नाम से जानी जाती हैं। फिर भी, इस परिभाषा में रहते हुए भी कुछ ऐसे कार्यों को अपने व्यवहारों में लाते हैं और इस प्रकार अपराध करते हैं। राजनीतिक समाज इन व्यवहारों पर प्रतिक्रिया करता है। इस प्रतिक्रिया का माध्यम द्रण्ड, उपचार या निरोध होता है।
सदरलैण्ड के अनुसार, अपराधशास्त्र के निम़न तीन भाग हैं-
( क) कानून का समाजशास्त्र- इसके अन्तर्गत अपराधी कानूनों के विकास का विश्लेषणात्मक अध्ययन किया जाता है इसके अन्तर्गत उन प्रक्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है जिनसे कानूनों का निर्माण होता है। प्रत्येक समाज में शान्ति और व्यवस्था की स्थापना के लिए कानूनों का निर्माण किया जाता है और इन कानूनों की रक्षा की जाती है। जो व्यक्ति इन कानूनों की अवहेलना करते हैं उनके खिलाफ प्रतिक्रिया की जाती हैं। इस प्रकार कानून की आत्मा को शुद्ध रखाजाता है। अपराधशास्त्र कानून के निर्माण, विकास और महत्त्व का अध्ययन करता है।
(ख) अपरांधी-कारणशास्त्र- इसके अन्तर्गत अपराध के कारणों का अध्ययन किया जाता है। अपराध क्यों और कैसे होते है? इसका उत्तर देना भी. अपराधशास्त्र का कार्य है।
(ग) दण्डशास्त्र-समाज में अपराध न हो, इसके लिए दण्ड व्यवस्था का विधान बताया गया है। दण्ड के माध्यम से मनुष्य की अपराधी प्रवृत्तियों परं नियन्त्रण रखा जाता है। यह दण्ड, शारीरिक, आर्थिक, मानसिक तथा अन्य प्रकार का हो सकता है,। इस दण्ड को उद्देश्य कानूनों की स्थापना तथा अंपराधियों का सुधार करना भी है।
इलियट ने अपराधशास्त्र की परिभाषा करते हुए इसके अन्तर्गत निम्न चार तत्त्वों को स्वीकार किया है। यही चार तत्त्व, इलियट के अनसार, अपराधशास्त्र का क्षेत्र निश्चित करते हैं। ये तत्त्व निम्नलिखित
हैं-
( क) अपराध की प्रकृति-इसके अन्तर्गत अपराध की व्याख्या की जाती है। इस प्रश्न का उत्तर दिया जाता है कि अपराध क्या है? यह व्याख्या अनेक दृष्टिकोणों से की जाती है। इसके अन्तर्गत अपराध की विशेषताओं और तत्त्वों को भी सम्मिलित किया जाता है।
( ख) अपराधी-व्यवहार से सम्बन्धित कारण--इसे अपराधशास्त्र की कारण सम्बन्धी व्याख्या नेर नाम से भी जाना जाता है। परा क्यों होते हैं ? इसके अन्तर्गत इस प्रश्न का उत्तर दिया जाता है। इसके अन्तर्गत अपराध के उत्तरदायित्व का भी अध्ययन किया जाता है।
(ग) अपराधियों का वैयक्तिक विषयक अध्ययन- इसके अंतर्गत अपराध का अध्ययन किया जाता है। अपराधौ व्यक्तित्व का विश्लेषण किया जाता है और इसे ब्यक्तित्व को अपराध के साथ सम्बन्ध जोड़ा जाता है।
(घ) अपराधियों का उपचार या दण्ड-अपराधशास्त्र का अन्तिम कार्य यह है कि अपराधियों को दण्ड दिया जाये। इस दण्ड के दो उद्देश्य होते हैं-भविष्य में अपराधों को रोकना और अपराधी का सुधार करना।
इस प्रकार अपराधशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत मानव व्यवहार के उस पक्ष का अध्ययन किया जाता है जो अपराधी है। यह कानूनों की व्याख्या करता है और इन कानूनों को प्रभावशाली ढंग के लागू करने के लिए दण्ड की व्यवस्था करता है।
(Article PDF link)
https://drive.google.com/file/d/1Pho2H1gUB3KgaW-Jvnc-hEqoOykNOiIL/view?usp=drivesdk
Good
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